जगदीशपुर में बाबू वीर कुंवर सिंह के विजयोत्सव पर नहीं होगा कार्यक्रम

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कोरोना काल मे दूसरी बार भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के नायक बाबू वीर कुंवर सिंह की विजयोत्सव नही मनाया गया. बाबू वीर कुंवर सिंह के शौर्य के 163 साल हो गए. 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के नायक बाबू वीर कुंवर सिंह ने 80 वर्ष की आयु में अंग्रेजों को पराजित कर देश ही नहीं दुनिया में यह एहसास दिलाया कि अदम्य साहस व शक्ति के बल पर किसी उम्र में जंग जीती जा सकती है.
इस बार भी ऐतिहासिक नगरी जगदीशपुर बाबू वीर कुंवर सिंह के विजयोत्सव के रंग में नहीं रंग पाएगी.पिछले वर्ष 2020 में कोरोना वायरस के कारण विजयोत्सव का जश्न नहीं मनाया था इस बार भी हालत पिछले वर्ष की तरह ही है हालांकि विजयोत्सव के मौके पर ऐतिहासिक किला की साफ सफाई कराई गई थी लेकिन कोई भी खास कार्यक्रम नहीं होगा.

कौन थे बाबू वीर कुंवर सिंह

बिहार के भोजपुर जिले के जगदीशपुर गांव के प्रसिद्ध भोज वंशज परिवार में वीर कुंवर सिंह का जन्म सन् 1777 में हुआ था. उनके पिता का नाम तेज कुंवर सिंह था. पिता की मौत के बाद बाबू कुंवर सिंह 1830 में गद्दी पर बैठे थे. कुंवर सिंह के पास बड़ी जमींदारी थी. कहा जाता है कि बचपन से ही कुंवर सिंह को खेल खेलने की बजाय घुड़सवारी, निशानेबाजी, तलवारबाजी का शौक था. उनके बारे में ये भी प्रसिद्ध है कि भारत में छत्रपति शिवाजी महाराज के बाद वे दूसरे योद्धा थे, जो गोरिल्ला युद्ध नीति में माहिर थे. बाबू कुंवर सिंह शाहाबाद की जागीरों के मालिक थे.बाबू कुंवर सिंह रामगढ़ के बहादुर सिपाहियों के साथ बांदा, रीवां, आजमगढ़, बनारस, बलिया, गाजीपुर एवं गोरखपुर में सक्रिय रहे. इसके बाद अंग्रेजों ने लखनऊ पर फिर से कब्जा कर लिया. कुंवर सिंह बिहार की ओर वापस लौटने लगे, जब वे जगदीशपुर जाने के लिए गंगा पार कर रहे थे, तभी अंग्रेजी सैनिकों ने उन्हें घेरने का प्रयास किया. गोलियां चला दी गईं, जिसमें से एक गोली बाबू कुंवर सिंह के हाथ पर लगी.इस दौरान उन्होंने अपनी कलाई काटकर नदी में बहा दी और अपनी सेना के साथ जंगलों की ओर चले गए. इसके बाद 23 अप्रैल, 1858 को अंग्रेजी सेना को पराजित करने के बाद वे जगदीशपुर पहुंचे. वे बुरी तरह से घायल थे. 1857 की क्रान्ति के इस महान नायक का 26 अप्रैल, 1858 को निधन हो गया.

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